पांच आटो चालकों से माना कि शाहीन बाग एक मुद्दा तो बन ही गया

दिल्ली चुनावों की कवरेज के दौरान वोटरों के कई समूह, अलग रंग और जुदा अंदाज सामने आ रहे हैं। 2013 और 2015 का चुनाव, जब दिल्ली के आटो चालकों और ई-रिक्शावालों ने केजरीवाल की भरपूर मदद की थी। उस दौरान सत्ता में आने से पहले केजरीवाल ने भी उनके लिए वादों की झड़ी लगा दी थी। फलां उल्लंघन का चालान नहीं होगा, सिपाही गलत व्यवहार नहीं करेगा और नए परमिट जारी करना आदि।



मंगलवार को केजरीवाल ने अपनी पार्टी का घोषणा पत्र जारी कर दिया। इसके बाद कई आटो चालकों से बात कर यह जाना गया कि क्या इस बार के चुनाव में 'शाहीन बाग' जैसा कोई मुद्दा है या नहीं। पांच आटो चालकों से माना कि शाहीन बाग एक मुद्दा तो बन ही गया है। केवल एक चालक ऐसा रहा, जिसने ये तो माना कि ये मुद्दा है, मगर उन्होंने कहा, इसका चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा।


राजकुमार, त्रिलोकपुरी



उनका कहना है कि सारे एक जैसे ही तो हैं। कोई आ जाए हमें तो आटो ही चलाना है। दिल्ली में झोपड़ी भी हैं और बड़े बड़े बंगले भी हैं। जो ये कहता है कि मैं कुछ दे दूंगा। कहां से देगा। जमीन कहां है। बाबू जी, मैं सही कह रहा हूं। जनता को सब भेड़ बकरी समझते हैं। अब आपने बात पूछी शाहीन बाग की तो है ना ये मुद्दा। आज सब जान गए कि शाहीन बाग कहां है और वहां क्या चल रहा है। दिन में हम कितने लोगों से मिलते हैं, तो ऐसे ही चलते-चलते बात हो जाती है। सब मान रहे हैं कि शाहीन बाग, चुनाव में आ गया है। भाजपा कम कहां है। अगर वह चाहती तो प्रदर्शन को हटा सकती थी। एमजे अकबर, शाह नवाज हुसैन और मुख्तार अब्बास नकवी कहां चले गए। क्या ये लोगों को समझाने शाहीन बाग गए हैं। केजरीवाल, ये फ्री वो फ्री, लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं। बाकी शाहीन बाग है जी।



वृंदावन मिश्रा, किराडी



ये कहते हैं, यह बात सही है कि शाहीन बाग दिल्ली चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बना दिया गया है। पहले कुछ नहीं था, मगर अब भाजपा 20-25 तक पहुंच सकती है। खैर ये चुनाव ही बताएगा। हम तो इतना ही कह सकते हैं कि शाहीन बाग, सभी लोगों तक पहुंच रहा है। बहुत से ऐसे लोग हैं जो पहले केजरीवाल की ओर जा रहे थे, लेकिन भाजपा ने शाहीन बाग को ऐसे आगे बढ़ाया कि लोगों ने अपना मन बदल लिया। वे तय कर चुके हैं कि अब इस ओर जाना है। हालांकि ये प्रदर्शन तो गलत है ही। दूसरे लोगों को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। प्रदर्शन करना है, तो रामलीला मैदान चले जाओ। किसने रोका है। ऐसे लोगों पर नकेल भी जरूरी है। इस चुनाव में अब काम तो कोई मुद्दा है ही नहीं। कोई शाहीन बाग लिए है तो कोई फ्री देने लगा है। अरे फ्री का कोई मोल नहीं होता। 



जोनशन, दक्षिण पुरी


बताते हैं कि शाहीन बाग को जानबूझ कर चुनाव का मुद्दा बना दिया गया, हालांकि ये गलत है। जब वहां रास्ता बंद था और सभी को पता भी है तो भाजपा ने कुछ किया क्यों नहीं। भाजपा ने उसे क्यों अभी तक चलने दिया। अब चुनाव में बात हो रही है। बिल्कुल हो रही है और अच्छे से हो रही है। मैं ये नहीं कहता कि ये इसे इलेक्शन पलट रहा है, मगर लोगों की जुबान पर शाहीन बाग आ गया है। भाजपा तो इस मुद्दे को घर-घर ले जाने की तैयारी में बैठी है। मुकाबला तो आप और भाजपा के बीच है। कांग्रेस, कहीं नहीं ठहरती। वह आज मैदान में क्यों नहीं है। उनके पास बंदे भी तो नहीं हैं। शाहीन बाग पर कांग्रेसी भी घिरे बैठे हैं। भाजपा ने इसका फायदा उठा लिया है।



रामलाल, छतरपुर


दिल्ली का चुनाव दूसरी जगहों से थोड़ा अलग ही रहता है। पिछली बार का नतीजा भी आपने देखा होगा। इस बार वैसे तो केजरीवाल के सामने कोई नहीं टिकता। लोग शाहीन बाग पर बात करने लगे हैं। हम भी सोचते हैं कि पहले क्या हो रहा था और अब दो सप्ताह में कहां से कहां पहुंच गए। शाहीन बाग पर हम लोग तो आपस में ही चर्चा कर सकते हैं। अब हम लोगों से कोई बड़ा आदमी थोड़े न ही बताएगा। दिल्ली में काम को कौन पूछ रह है। सब घालमेल कर दिया गया है। शाहीन बाग का बहुत से लोगों को मालूम ही नहीं था कि ये दिल्ली में कोई जगह है। अब महिला, पुरुष और बाल गोपाल सब जान गए हैं। चुनाव पर थोड़ा असर तो डालेगा। बाकी रिजल्ट बताएगा।



सिपाही महतो, आरके पुरम


उनका कहना है कि देखिये जी शाहीन बाग एक मुद्दा बन गया है। लोगों को पहले पता नहीं था, अब मीडिया में ये मुद्दा इतना ज्यादा चल गया कि सब लोगों इसे जानने लगे। भले ही यह चुनाव में मुद्दा बन गया, लेकिन इस पर वोटिंग नहीं होगी। अगर कोई यह सोच रहा है कि शाहीन बाग के नाम पर वोट मिलेंगे, तो यह गलत है। लोग इसकी बात कर रहे हैं, यह सही है। अब वोट तो काम के आधार पर ही मिलेगा या फिर पसंद के आधार पर। कोई पार्टी किसी की पसंद हो सकती है। दिल्ली में केवल दो ही पार्टी चुनाव में दिख रही हैं। एक भाजपा और दूसरी आप। कांग्रेस का कुछ पता नहीं, क्या चल रहा है